भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल
}}
<poem>
रोज़ ही मैं सोचती
तुम्हें राक्षस के महल में