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|संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>बढती हैं दूरियाँ मेहराब मेहराब
धूप में चौंकता है आदमी
घूमता है आईना
एक सन्नाटा है सिलसिलेवार
तेजहीन आँखों का ख़ालीपन
बढती हैं दूरियाँ मेहराब मेहराब
धूप में चौंकता है आदमी
रस्सियों पर झूलेंगे साँप
ये कॉरीडोर,ये बॉल्कनियाँ, ये आरामघर
एक सन्नाटा है सिलसिलेवार
तेजहीन आँखों का ख़ालीपन