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Kavita Kosh से
|रचनाकार=बिहारी
|संग्रह=
}} {{KKCatKavita}}[[Categrory: कवित्त]]<poem>
केसरि से बरन सुबरन बरन जीत्यौ
:::बरनीं न जाइ अवरन बै गई।
कहत बिहारी सुठि सरस पयूष हू तैं,
:::उष हू तैं मीठै बैनन बितै गई।
भौंहिनि नचाइ मृदु मुसिकाइ दावभाव
:::चचंल चलाप चब चेरी चितै कै गई।
लीने कर बेली अलबेली सु अकेली तिय
:::जाबन कौं आई जिय जावन सौं दे गई।।</poem>