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|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
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:दीप जलता है नहीं, यह
:स्नेह का सागर रहा जल !
:::मुक्त बहता है न जीवन ;
:::सिर्फ़ बहती धार चंचल !
'''रचनाकाल:1946</poem>