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|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जो लड़ रहे<br>साम्राज्यवादी शक्तियों से देश,<br>जिनकी वीर जनता ने<br>किया धारण शहीदी वेश<br>भेजता हूँ मैं उन्हें शुभकामनाएँ —<br>::हो विजय !<br>भेजता विश्वास हूँ —<br>हे अभय !<br>अन्तिम विजय तुमको मिलेगी,<br>आततायी-दुर्ग की दृढ़ नींव<br>::निश्चय ही हिलेगी,<br>स्वार्थमय<br>साम्राज्य-लिप्सा से सनी<br>::सत्ता ढहेगी !<br>मुक्त जनता<br>उठ<br>बुलन्दी से<br>निडर बन<br>मातृ-भू की जय कहेगी !<br><br>
जानते हैं हम<br>जानते हो तुम<br>जगत की वस्तु सर्वोत्तम<br>व्यक्ति की स्वाधीनता है<br>:व्यक्ति के हित में !<br>धरा पर<br>एक मानव भी<br>न वंचित हो<br>प्रथम अधिकार से<br>स्वाधीन जीवन से।<br>अतः<br>संघर्ष जो तुम कर रहे हो,<br>देश का बूढ़ी शिराओं में<br>युवा बल भर रहे हो<br>शक्ति उससे पा रहा मैं भी !<br>राष्ट्र की स्वाधीनता का गीत<br>मिल कर गा रहा मैं भी !<br/poem>
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