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|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
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पहाड़ के जिस्म का
तराशता आदमी
बना डालता है
पहाड़ के जिस्म से
एक बाल
टुकड़ों-टुकड़ों में चीर-काट
नक्काशी कर जोड़ता है
पहाड़ की कठोर देह पर
खरोंचे मार-मार
बिछा देती है आदमी
पत्थर, लक्कड़ और
मिट्टी का अंतरंग पारदर्शी है
पहाड़ की ढलान पर
इस आदमी ने सीख रखी है
सयाले की बर्फ़ में
दबी आग
और चैत में कूजे की
समा गया है भीतर
आषाढ़ की दोपहरी में
ढलान पर रंभाती
और धुंध में दबे
सावनी पहाड़ के
सीने से उतरते
बूढ़े पहाड़ के
कंधों पर खेलता