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|संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>यह विश्वास मुझे है —<br>एक दिवस तुम<br>मेरी प्यासी आँखों के सम्मुख<br>मधु-घट लेकर आओगी !<br>बदली बनकर छाओगी !<br> दरवाज़े को<br>गोरे-गोरे दर्पन-से हाथों से<br>खोल खड़ी हो जाओगी !<br>भोले लाल कपोलों पर<br>लज्जा के रँग भर-भर लाओगी !<br>नयनों की अनबोली भाषा में<br>जाने क्या-क्या कह जाओगी !<br><br>
ज्यों चंदा को देख<br>चकोर विहँसने लगता है,<br>ज्यों ऊषा के आने पर<br>कमलों का दल खिलने लगता है,<br>वैसे ही देख तुम्हें कोई<br>चंचल हो जाएगा !<br>बीते मीठे सपनों की<br>दुनिया में खो जाएगा !<br><br> :फिर इंगित से पास बुलाएगा,<br>धीरे से पूछेगा —<br>‘कैसी हो,<br>कब आयीं ? <BR>’तुम क्या उत्तर दोगी ? <BR> शायद, दो लम्बी आहें भर लोगी<br>आँखों पर आँचल धर लोगी !<br/poem>
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