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|रचनाकार=विद्यापति
}}
{{KKCatKavita}}<poem>नन्दनक नन्दन कदम्बक तरु तर, धिरे-धिरे मुरलि बजाब।<br>समय संकेत निकेतन बइसल, बेरि-बेरि बोलि पठाव।।<br>साभरि, तोहरा लागि अनुखन विकल मुरारि।<br>जमुनाक तिर उपवन उदवेगल, फिरि फिरि ततहि निहारि।।<br>गोरस बेचरा अबइत जाइत, जनि-जनि पुछ बनमारि।<br>तोंहे मतिमान, सुमति मधुसूदन, वचन सुनह किछु मोरा।<br>भनइ विद्यापति सुन बरजौवति, बन्दह नन्द किसोरा।। <br/poem>
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