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|रचनाकार= कालीदास
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रति रैन विषै जे रहे हैँ पति सनमुख ,तिन्हैँ बकसीस बकसी है मैँ बिहँसि कै ।कै।करन को कँगन उरोजन को चन्द्रहार ,कटि को सुकिँकनी रही है कटि लसि कै ।कै।कालिदास आनन को आदर सोँ दीन्होँ पान ,नैनन को काजर रह्यो है नैन बसि कै ।कै।एरी बैरी बार ये रहे हैँ पीठ पाछे यातेँ ,बार बार बाँधति हौँ बार बार कसि कै ।कै।
''' कालीदास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
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