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|संग्रह=संवर्त / महेन्द्र भटनागर
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पर,<br> जियो इस आस पर —<br>शायद कि कोई<br>एक दिन<br>बाले रवि-किरण-सा<br>राग-रंजित<br>हेम मंगल-दीप !<br><br>
सुनसान पथ पर<br>मूक एकाकी हृदय तुम,<br>भारवत् तन<br>व्यर्थ जीवन !<br><br>
पर, चलो इस आस पर —<br>शायद किसी क्षण<br>चिर-प्रतीक्षित<br>अजनबी के<br>चरण निःसृत कर उठें संगीत !<br><br>
खो गया मधुमास,<br>पतझर मात्र पतझर ; <br> फूल बदले शूल में<br>सपने गये सन धूल में !<br><br>
ओ आत्महंता !<br>द्वार-वातायन करो मत बंद,<br>शायद —<br>समदुखी कोई<br>भटकती ज़िन्दगी आ<br>कक्ष को रँग दे<br>सुना स्वर्गिक सुधाधर गीत !<br/poem>