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|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
{{KKCatKavita}}<poem>अभी न होगा मेरा अन्त<br><br>
अभी-अभी ही तो आया है<br>मेरे वन में मृदुल वसन्त-<br>अभी न होगा मेरा अन्त<br><br>
हरे-हरे ये पात,<br>डालियाँ, कलियाँ कोमल गात!<br><br>
मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर<br>फेरूँगा निद्रित कलियों पर<br>जगा एक प्रत्यूष मनोहर<br><br>
पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं,<br>अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं,<br><br>
द्वार दिखा दूँगा फिर उनको<br>है मेरे वे जहाँ अनन्त-<br>अभी न होगा मेरा अन्त।<br><br>
मेरे जीवन का यह है जब प्रथम चरण,<br>इसमें कहाँ मृत्यु?<br>है जीवन ही जीवन<br>अभी पड़ा है आगे सारा यौवन<br>स्वर्ण-किरण कल्लोलों पर बहता रे, बालक-मन,<br><br>
मेरे ही अविकसित राग से<br>विकसित होगा बन्धु, दिगन्त;<br>अभी न होगा मेरा अन्त। <br><br/poem>
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