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|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध
|संग्रह=तार सप्तक / अज्ञेय
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<poem>
घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगा,
तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा
हिमवत, जड़, निःस्पंद हृदय के अंधकार में जीवन-भय है
तेरे तीक्ष्ण बाणों की नोकों पर जीवन-संचार करेगा ।
घोर धनुर्धर, बाण तुम्हारा सब प्राणों को पार करेगातेरे क्रुद्ध वचन बाणों की गति से अंतर में उतरेंगे,<br>तेरी प्रत्यंचा का कंपन सूनेपन का भार हरेगा<br>हिमवत, जड़, निःस्पंद तेरे क्षुब्ध हृदय के अंधकार शोले उर की पीड़ा में ठहरेंगेकोपुत तेरा अधर-संस्फुरण उर में होगा जीवन-भय है<br>वेदनतेरे तीक्ष्ण बाणों रुष्ट दृगों की नोकों पर जीवनचमक बनेगी आत्म-संचार करेगा ज्योति की किरण सचेतन <br><br>
तेरे क्रुद्ध वचन बाणों की गति से अंतर सभी उरों के अंधकार में उतरेंगेएक तड़ित वेदना उठेगी,<br>तेरे क्षुब्ध हृदय के शोले उर तभी सृजन की पीड़ा में ठहरेंगे<br>बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगीकोपुत तेरा अधरशत-संस्फुरण उर में होगा शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-वेदन<br>अंकुररुष्ट दृगों दंशन की चमक बनेगी आत्म-ज्योति की किरण सचेतन चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी <br><br>
सभी उरों के अंधकार में एक तड़ित वेदना उठेगी,<br>तभी सृजन की बीज-वृद्धि हित जड़ावरण की महि फटेगी<br>शत-शत बाणों से घायल हो बढ़ा चलेगा जीवन-अंकुर<br>दंशन की चेतन किरणों के द्वारा काली अमा हटेगी ।<br><br> हे रहस्यमय, ध्वंस-महाप्रभु, जो जीवन के तेज सनातन,<br>तेरे अग्निकणों से जीवन, तीक्ष्ण बाण से नूतन सृजन<br>हम घुटने पर, नाश-देवता ! बैठ तुझे करते हैं वंदन<br>मेरे सर पर एक पैर रख नाप तीन जग तू असीम बन ।<br><br/poem>
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