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|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
एक दिन फिर लौट कर मैं आऊँगा कहता था वो
मंज़रों में आँख सा बस जाऊँगा कहता था वो

मौसिमों के आईनों में शक्ल देखेंगे शजर
एक तिनका चोंच में ले आऊँगा कहता था वो

कश्तियाँ कागज़ की बच्चे छोड़ कर उठ जाएँगे
नदियों की मौज से टकराऊँगा कहता था वो

जब ज़मीं से आसमाँ तक इक खला रह जाएगा
दूरियों की दलदलों से आऊँगा कहता था वो

ज़ुल्मतों से डूब जाएगा ज़माने का ज़मीर
आसमाँ से आग लेकर आऊँगा कहता था वो

कोंपलें जब कसमसायेंगी नुमू के वास्ते
ख़ुद को खोने के लिए फिर आऊँगा कहता था वो

गर्दिशें ही गर्दिशें हों गोल में जब भी 'निज़ाम'
मैं ख़ला में ख़ाक सा खो जाऊँगा कहता था वो
</poem>
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