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{{KKRachna
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
|संग्रह=सायों के साए में / शीन काफ़ निज़ाम
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरी ग़ज़लों में ढल गया होगा
जाने कितना बदल गया होगा
धूप सर पर उतर गयी होगी
चाँद चेहरे का ढल गया होगा
बेसबब अश्क़ बह नहीं सकते
कोई पत्थर पिघल गया होगा
रास्तों को वो जानता कब था
पाँव ही था फिसल गया होगा
मंज़िलें दूर क्यूँ हुई हैं निज़ाम
रस्ता रस्ता बदल गया होगा
</poem>
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|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
|संग्रह=सायों के साए में / शीन काफ़ निज़ाम
}}
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मेरी ग़ज़लों में ढल गया होगा
जाने कितना बदल गया होगा
धूप सर पर उतर गयी होगी
चाँद चेहरे का ढल गया होगा
बेसबब अश्क़ बह नहीं सकते
कोई पत्थर पिघल गया होगा
रास्तों को वो जानता कब था
पाँव ही था फिसल गया होगा
मंज़िलें दूर क्यूँ हुई हैं निज़ाम
रस्ता रस्ता बदल गया होगा
</poem>