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|रचनाकार=नरेश सक्सेना
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लाल रोशनी न होने का अंधेरा
अंधेरे को दोस्त बना लेना आसान है
उसे अपने पक्ष में भी किया जा सकता है
काली नज़र आती हैं
दरअसल चीज़ें
वे उन रंगों की नहीं दिखतीं
जिन्हें सोख लेती हैं
जिन्हें लौटा रही होती हैं
वे हमेशा
अपनी अस्वीकृति के रंग ही दिखाती हैं
सन्नाटे को सन्नाटे से
अंधेरे को अंधेरे से आैर और
नरेश को नरेश से।
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