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|रचनाकार=नरेश सक्सेना
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अरे कोई देखो
देखो एक घोंसला गिरा-
देखो वे आरा ले आए ले आए कुल्हाड़ी
उसे बांधने
देखो कैसे कांपी काँपी उसकी छायाउसकी पित्तयों पत्तियों की छाया
जिनसे घाव मैने पूरे
देखो कैसे कटी उसकी छाल