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|संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना
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'''(आंद्रेई तारकोवस्की को पढ़ते हुए)
तैरता हुआ चांद
मछलियों के जाल में नहीं फँसता
जब सारा पानी जमकर हो जाता है बर्फ़
वह चुपके से बाहर खिसक लेता है
जब झील सूख जाती है
तब उसकी तलहटी में वह फैलाता है अपनी चांदनी
ताकि रातों को भी दिखाई दे
मछलियों का तड़पना।
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