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Kavita Kosh से
::सिंहासन है शून्य, सिद्धि
::उनकी विधवा--सी रोती है।
रथ है रिक्त, करच्युत धनु है,
छिन्न मुकुट शोभाशाली,
खँडहर में क्या धरा, पड़े,
करते वे जिसकी रखवाली?
::जीवित है इतिहास किसी--विधि
::वीर मगध बलशाली का,
::केवल नाम शेष है उनके
::नालन्दा, वैशाली का।
हिमगह्वर में किसी सिंह का
आज मन्द्र हुंकार नहीं,
सीमा पर बजनेवाले घौंसों
की अब धुंधकार नहीं!
::बुझी शौर्य की शिखा, हाय,
::वह गौरव - ज्योति मलीन हुई,
::कह दो उनसे जगा, कि उनकी
::वसुधा वीर - विहीन हुई।
बुझा धर्म का दीप, भुवन में
छाया तिमिर अहंकारी;
हमीं नहीं खोजते, खोजती
उसे आज दुनिया सारी।
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