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Kavita Kosh से
*[[कुछ विरासत थी कुछ कमाए भी / विनोद तिवारी]]
*[[उनकी हर रात-जूही फूल हुआ करती है / विनोद तिवारी]]
*[[रात के सुनसान मेँ में मिलती है आग / विनोद तिवारी]]*[[तुम्हारे कोष कोश में वक्तव्य तो सुनहरे हैं / विनोद तिवारी]]
*[[आपके झूठे सहारों का भरम टूट गया / विनोद तिवारी]]
*[[रास्तों के घुमाव देख लिए / विनोद तिवारी]]
*[[कुछ इस क़दर ग़ुबार भरे दिन हैं आजकल / विनोद तिवारी]]
*[[क्या करें और कहाँ जाएँ बताए कोई / विनोद तिवारी]]
*[[कभी तो जागेहगा जागेगा वैताल देखते रहिए / विनोद तिवारी]]
*[[कह दो धन से बल से शोहरत हासिल करने वालों से / विनोद तिवारी]]
*[[किताब खोले कभी यूँ ही सोचता हूँ मैं / विनोद तिवारी]]
*[[दुनिया मस्त खिलौने पाकर हम सन्नाटा बुनते हैं / विनोद तिवारी]]
*[[कहीं भी लेश अपनापन नहीं है / विनोद तिवारी]]
*[[गुलदस्तों में कुछ् कुछ कनेर के फूल बचे बीमारों से / विनोद तिवारी]]
*[[किसी भी रात जब क़ाग़ज़-कलम उठाता हूँ / विनोद तिवारी]]
*[[मिला जो यान वो टूटा हुआ मिला मुझको / विनोद तिवारी]]