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"कल प्रिये, निज आर्य का अभिषेक है;
सब कहीं आनन्द का अतिरेक है।
राम-राज्य विधान होने जा रहा;पूत पर पावन नया युग आ रहा!अब नया वर-वेश होगा आर्य का,और साधन क्षत्र-कुल के कार्य का।दृग सफल होंगे हमारे शीघ्र ही,सिद्ध होंगे सुकृत सारे शीघ्र ही।""ठीक है, पर कुछ मुझे देना कहो,सेंत मेंत न दृष्टि-फल लेना कहो,तो तुम्हें अभिषेक दिखला दूँ अभी,दृश्य उसका सामने ला दूँ अभी।""चित्र क्या तुमने बनाया है अहा?"हर्ष से सौमित्रि ने साग्रह कहा--"तो उसे लाओ, दिखाओ, है कहाँ?’कुछ’ नहीं मैं ’बहुत कुछ’ दूँगा यहाँ।"उर्मिला ने मूर्ति बन कर प्रेम की,खींच कर मणि-खचित मचिया हेम की,आप प्रियतम को बिठा उस पर दिया,और ला कर चित्रपट सम्मुख किया।चित्र भी था चित्र और विचित्र भी,रह गये चित्रस्थ-से सौमित्र भी।
</poem>
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