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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रामकृष्ण पांडेयदिनेश कुमार शुक्ल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
समय की गति रोकना चाहते हैं वे लोग
जिनके खिलाफ होता है समय
फिर भी समय बढता ही चला जाता है
जैसे बढती चली जाती है नदी
अपने उदगम से सागर तक
बाधाओं को तोडती-फोडती
चीरती हुयी धरती का सीना
नदी की तरह ही होता है समय
निरंतर प्रवहमान
नदी की तरह ही सबको सुकून देता है
कभी - कभी समय
आपका हाथ पकडकर
घुमाने ले जाता है
अतीत की गलियों में
फिर वह आपको खडा कर देता है
वर्तमान के आईने के सामने
क्या आप
अपना बदला हुआ चेहरा देखकर
भयभीत नहीं होते
समय भयभीत करना नहीं चाहता
वह आपके साथ होना चाहता है
हर वक्त,हर समय
ताकि, समय की आहट सुनते हुए
आप महसूस कर सकें
उसका संगीत ...
</poem>
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|रचनाकार=रामकृष्ण पांडेयदिनेश कुमार शुक्ल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
समय की गति रोकना चाहते हैं वे लोग
जिनके खिलाफ होता है समय
फिर भी समय बढता ही चला जाता है
जैसे बढती चली जाती है नदी
अपने उदगम से सागर तक
बाधाओं को तोडती-फोडती
चीरती हुयी धरती का सीना
नदी की तरह ही होता है समय
निरंतर प्रवहमान
नदी की तरह ही सबको सुकून देता है
कभी - कभी समय
आपका हाथ पकडकर
घुमाने ले जाता है
अतीत की गलियों में
फिर वह आपको खडा कर देता है
वर्तमान के आईने के सामने
क्या आप
अपना बदला हुआ चेहरा देखकर
भयभीत नहीं होते
समय भयभीत करना नहीं चाहता
वह आपके साथ होना चाहता है
हर वक्त,हर समय
ताकि, समय की आहट सुनते हुए
आप महसूस कर सकें
उसका संगीत ...
</poem>