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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}


जब किसी से जुड़ता है दिल मेरा,<br>
दिल दीवानगी को पार कर जाता है।<br>
और जब टूटता है दिल मेरा,<br>
दिल दुख की दीवानगी में डूब जाता है।<br><br>
क्या करें इस दिल का,<br>
समझौता इसे भाता नहीं।<br>
और दिल की उन गहराईयों तक,<br>
समझने के लिए कोई आता नहीं।<br><br>
इस दुनिया में दिल की बात करना,<br>
खुद को भरमाना है।<br>
क्या करें वे जिन्हें कुछ न मिले,<br>
इसे भ्रम से ही बहलाना है।<br><br>
प्रेम की स्वार्थलोलुपता देख,<br>
मेरा दिल दहल जाता है।<br>
पर जिन्हें कुछ नहीं मिलता,<br>
उनका दिल जैसा भी हो, बहल जाता है।<br><br>
दिल का जुड़ना तो एक क्षण में पूर्ण होता है,<br>
जहाँ सब कुछ लुटा देने की भावना का प्रवाह होता है।<br>
निकटता साथ-साथ रहने से नहीं होती है,<br>
वह तो सिर्फ़ थोपा हुआ एक लोकाचार होता है।<br><br>
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