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03:46, 16 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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[[Category:पद]]
<poem>
चलत न चारयौ भाँति कोटिनि बिचारयौ तऊ,
दाबि दाबि हारयौ पै न टारयौ टसकत है ।
परम गहीली बसुदेव-देवकी की मिली,
चाह-चिमटी हूँ सौं न खैंचौं खसकत है ॥
कढ़त न काढ़्यौ हाय बिथके उपाय सबै,
धीर-आक-छीर हूँ न धारैं धसकत है ।
ऊधौ ब्रज-बास के बिलासनि कौ ध्यान धँस्यौ,
निसि-दिन काटैं लौं करेजें कसकत है ॥6॥
</poem>