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|रचनाकार=घनानंद
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याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है।
तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,
सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू,
काहू कलपायहै सु कैसे कल पायहै॥
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