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01:17, 23 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
|संग्रह=
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[[Category:कविता]]
<poem>
मैं शरणागत हूँ स्वामि करो सुनवाई।
है महाकुकर्मी भाव-स्वभाव हमारा।
पर जैसा भी हूँ हूँ भगवान तुम्हारा।
मल-मल धो दो मेरे स्वरूप की काई-
मैं शरणागत हूँ 0...........................।।1।।
मेरी सम्हाल करने में क्या थक जाते ?
पापों का देख असाध्य रोग रूक जाते ?
क्यों की मेरी खोटी कर्तव्य कमाई-
मैं शरणागत हूँ 0...........................।।2।।
पहले तो दया-दूध दे पाला-पोषा।
क्या सोचे नहीं सर्प का कौन भरोसा।
जब पाले रोग स्वयं तो करो दवाई-
मैं शरणागत हूँ 0...........................।।3।।
अधरंग चढ़ा है अपना रंग चढ़ा दो।
सूखे उर में निज प्रेम-उमंग बढ़ा दो।
हे महा मधुर खल की लो छीन खटाई-
मैं शरणागत हूँ 0...........................।।4।।
भिक्षुक को करते नृप जड़ को मेधावी।
पल भर में आप पलट सकते हैं भावी।
पत्थर की चट्टानें जल पर तैराई-
मैं शरणागत हूँ 0...........................।।5।।
कर सकते माफ न मेरी कौन खत है।
तुम क्या से क्या कर सकते किसे पता है।
‘पंकिल’-उर में भी प्रभु कर लो पहुनाई-
मैं शरणागत हूँ 0 ..........................।।6।।
</poem>