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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
<poem>
मत देखो मेरा भाव अम्ब।
सोचो निज करूण स्वभाव अम्ब।।

पहले था कितना सरल रहा सम मान-प्रतिष्ठा-गाली में।
पर आज किसी से कम न इंच भी हूँ गुरू-घंटाली में।
बचपन वाला भोलापन दे तेरा जग-विदित प्रभाव अम्ब-
मत देखो मेरा भाव 0........................................।।1।।

दुनियाँ में मुझसा नीच-निकम्मा कोई और न दूजा है।
सब कहते क्या प्रभु-प्रभु रटता काम ही राम की पूजा है।
क्यों मौन साध बैठी हो माँ हॅंसता है सारा गाँव अम्ब-
मत देखो मेरा भाव 0........................................।।2।।

ऐसा तो कभीं न हुआ न होगा माँ भी हो जाये निर्मम।
होती है सुत में लाख कमीं पर माँ का स्नेह न होता कम।
सुत से तो माँ रखती ही है बिन कारा बड़ा लगाव अम्ब-
मत देखो मेरा भाव 0........................................।।3।।

अपनी सुधि-सम्पति से मुझको जग-जननी बना महान धनी।
बेचैन तनय को उठा अंक में भूख लो चूम जगत-जननी।
‘पंकिल’ उर में निर्दयी काम के लगे करोड़ों घाव अम्ब-
मत देखो मेरा भाव 0........................................।।4।।

हे अम्ब अखिल ब्रह्माण्ड बीच बस व्याप्त तुम्हारी ही सत्ता।
तेरी इच्छा के बिना कभीं भीं हिलता नहीं एक पत्ता।
सुर ब्रह्मादिक तैतीस कोटि पूजते तुम्हारा पाँव अम्ब-
मत देखो मेरा भाव 0........................................।।5।।

तुम अखिल कारणों की कारण सारे प्रपंच का मूल तुम्हीं।
सब हो जाते प्रतिकूल किन्तु रहती सुत के अनुकूल तुम्हीं।
मत बाँह छोड़ माँ दयामयी कहीं डूब न जाये नाव अम्ब-
मत देखो मेरा भाव 0........................................।।6।।
</poem>
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