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तुम न थे / रंजना जायसवाल

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<poem>
अपने ही
अंदर से फूटती
कस्तूरी-गंध से
बेचैन होकर
भागी थी
तुम तक

किन्तु
तृष्णा से विकल हो
ख़त्म हो गई अन्ततः
क्योंकि वँहा सिर्फ़
मरीचिका थी
तुम न थे...।
</poem>