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|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
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<poem>
प्रेम
धरती पर लहलहाती
फसलों जैसा
रेशम-सी कोमल
भाषा जैसा
जिसे सुनती है
ज़मीन।
</poem>
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प्रेम
धरती पर लहलहाती
फसलों जैसा
रेशम-सी कोमल
भाषा जैसा
जिसे सुनती है
ज़मीन।
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