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{{KKRachna
|रचनाकार=सरवर आलम राज 'सरवर'
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
यूँ अहले-दिल में मेरा इलाही ! शुमार हो
मेरी जबीं पे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए यार हो
इतना असर तो तुझ में ग़मे-यादे-यार हो
मैं बे-सुकूँ इधर वो उधर बे-क़रार हो !
शाम-ए-ख़िज़ाँ बा-रंगे-जमाल-ए-बहार हो
गर ज़िन्दगी पे अपनी कोई इख़्तियार हो
दामन है चाक मेरा,गिरेबाँ भी तार-तार
कोई तो हो जो इश्क़ का आईनादार हो !
मैं हूँ ,ख़्याल-ए-यार हो,शाम-ए-उमीद हो
यूँ ख़ातिमा हयात का पायानेकार हो !
अफ़्सोस अब सज़ा के भी का़बिल नही रहा
मेरी तरह ख़ुदा न करे कोई ख़्वार हो !
गुम हूँ मैं इस तरह खु़द अपनी ही जात में
जैसे वह मौज ,बेह्र की जो राज़दार हो !
हुस्ने-ख़ुदी में रंग हो ऐसा कि हमनशीं
आईना जिसको देख के ख़ुद शर्मसार हो !
जैसा कि मेरे साथ राह-ए-दर्द में हुआ
वैसा ही तेरे साथ हो और बार-बार हो !
’सरवर’ दुआ हमारी तिरे हक़ में है यही
ये बज़्म-ए-शे’र तेरे लिए साज़गार हो !
</poem>
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यूँ अहले-दिल में मेरा इलाही ! शुमार हो
मेरी जबीं पे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए यार हो
इतना असर तो तुझ में ग़मे-यादे-यार हो
मैं बे-सुकूँ इधर वो उधर बे-क़रार हो !
शाम-ए-ख़िज़ाँ बा-रंगे-जमाल-ए-बहार हो
गर ज़िन्दगी पे अपनी कोई इख़्तियार हो
दामन है चाक मेरा,गिरेबाँ भी तार-तार
कोई तो हो जो इश्क़ का आईनादार हो !
मैं हूँ ,ख़्याल-ए-यार हो,शाम-ए-उमीद हो
यूँ ख़ातिमा हयात का पायानेकार हो !
अफ़्सोस अब सज़ा के भी का़बिल नही रहा
मेरी तरह ख़ुदा न करे कोई ख़्वार हो !
गुम हूँ मैं इस तरह खु़द अपनी ही जात में
जैसे वह मौज ,बेह्र की जो राज़दार हो !
हुस्ने-ख़ुदी में रंग हो ऐसा कि हमनशीं
आईना जिसको देख के ख़ुद शर्मसार हो !
जैसा कि मेरे साथ राह-ए-दर्द में हुआ
वैसा ही तेरे साथ हो और बार-बार हो !
’सरवर’ दुआ हमारी तिरे हक़ में है यही
ये बज़्म-ए-शे’र तेरे लिए साज़गार हो !
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