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{{KKRachna
|रचनाकार= अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’
}}
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<poem>
लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है
कोई दीवाना है सच बोलता है।
बेचता है सड़क पर बाँसुरी जो
हवा में कुछ तराने घोलता है।
वो ख़ुद निकला नहीं तपती सड़क पर
पेट पाँवों पे चढ़ कर डोलता है।
पेश आना अदब से पास उसके
वो बन्दों को नज़र से तोलता है।
याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमे सचमुच कोई अनमोलता है।
</poem>
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|रचनाकार= अमिताभ त्रिपाठी ’अमित’
}}
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लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है
कोई दीवाना है सच बोलता है।
बेचता है सड़क पर बाँसुरी जो
हवा में कुछ तराने घोलता है।
वो ख़ुद निकला नहीं तपती सड़क पर
पेट पाँवों पे चढ़ कर डोलता है।
पेश आना अदब से पास उसके
वो बन्दों को नज़र से तोलता है।
याद रह जाय गर कोई सुखन तो
उसमे सचमुच कोई अनमोलता है।
</poem>