भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=अज्ञेय]]}}[[Category:कविताएँलम्बी रचना]]{{KKPageNavigation|पीछे=असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 2|आगे=असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 4|सारणी=असाध्य वीणा / अज्ञेय}}[[Categoryचित्र:अज्ञेयVichitra Veena1.jpg]]<poem>मैं सुनूँ, गुनूँ, विस्मय से भर आँकू तेरे अनुभव का एक-एक अन्त:स्वर तेरे दोलन की लोरी पर झूमूँ मैं तन्मय-- गा तू : तेरी लय पर मेरी साँसें भरें, पुरें, रीतें, विश्रान्ति पायें। "गा तू ! यह वीणा रखी है : तेरा अंग -- अपंग। किन्तु अंगी, तू अक्षत, आत्म-भरित, रस-विद, तू गा : मेरे अंधियारे अंतस में आलोक जगा स्मृति का श्रुति का --