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मैं सुनूँ,<br>
ओस-बूँद की ढरकन-इतनी कोमल, तरल, कि झरते-झरते<br><br>
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मानो हरसिंगार का फूल बन गयी।<br>
अचंचल धीर थाप भैंसो के भारी खुर की।<br><br>
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