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मेरी चप्पल / मुकेश जैन

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नया पृष्ठ: '''मेरी चप्पल ''' मेरी चप्पल<br /> घिस गई हैं अब क्या होगा<br /> इसी सोच में…
'''मेरी चप्पल '''

मेरी चप्पल<br />
घिस गई हैं

अब क्या होगा<br />
इसी सोच में बैठा हूँ मैं

खीझ-खीझ उठता हूँ मैं<br />
उस पर, जिसने<br />
पहली चप्पल बनाई होगी,<br />
यदि नहीं बनाता,<br />
तो यह दिन नहीं देखना पड़ता<br />
मुझको, मेरी सारी चिन्ता चप्पल है

नंगे पैरों कैसे चलूं<br />
मेरी भी तो कोई इज़्ज़त है<br />
अब क्या होगा

अब खरीदनी ही होगी<br />
चप्पल एक जोड़ी<br />
कतर-ब्यौत करके खर्चों में,<br />
खर्चे, जो<br />
मेरी इज़्ज़त बरकरार रखते हैं.

'''रचनाकाल:''' 22/जून/1989
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