भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन दिवंगत हुए / कुँअर बेचैन

1,690 bytes removed, 21:23, 26 दिसम्बर 2007
लेखक: [[{{KKRachna|रचनाकार=कुँअर बेचैन]][[Category:कविताएँ]][[Category:कुँअर बेचैन]]}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~{{KKPustak|चित्र=Din_diwangat_huye.jpg|नाम=दिन दिवंगत हुए|रचनाकार=[[कुँअर बेचैन]]|प्रकाशक=डायमण्ड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली |वर्ष= २००६|भाषा=हिन्दी|विषय=--|शैली=--|पृष्ठ=103|ISBN=81-288-1039-1|विविध=--}}
रोज़ आँसू बहे रोज़ आहत हुए<br>रात घायल हुई, * [[दिन दिवंगत हुए<br>हम जिन्हें हर घड़ी याद करते रहे<br>रिक्त मन में नई प्यास भरते रहे<br>रोज़ जिनके हृदय में उतरते रहे<br>वे सभी दिन चिता की लपट पर रखे<br>रोज़ जलते हुए आख़िरी ख़त हुए<br>दिन दिवंगत हुए !<br><br> शीश पर सूर्य को जो सँभाले रहे<br>नैन में ज्योति का दीप बाले रहे<br>और जिनके दिलों में उजाले रहे<br>अब वही दिन किसी रात की भूमि पर<br>एक गिरती हुई शाम की छत हुए !<br>दिन दिवंगत हुए !<br><br> जो अभी साथ थे, हाँ अभी, हाँ अभी<br>वे गए तो गए, फिर न लौटे कभी<br>है प्रतीक्षा उन्हीं की हमें आज भी<br>दिन कि जो प्राण के मोह में बंद थे<br>आज चोरी गई वो ही दौलत हुए ।<br>दिन दिवंगत हुए !<br><br> चाँदनी भी हमें धूप बनकर मिली<br>रह गई जिंन्दगी की कली अधखिली<br>हम जहाँ हैं वहाँ रोज़ धरती हिली<br>हर तरफ़ शोर था और इस शोर में<br>ये सदा के लिए मौन का व्रत हुए।<br>दिन दिवंगत हुए!<br><br> -- यह कविता [[deepak. / कुँअर बेचैन]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>