भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वर्ना रो पड़ोगे ! / कुँअर बेचैन

1,105 bytes added, 07:50, 29 दिसम्बर 2006
लेखक: [[कुँअर बेचैन]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:कुँअर बेचैन]]

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

बंद होंठों में छुपा लो<br>
ये हँसी के फूल<br>
वर्ना रो पड़ोगे।<br><br>

हैं हवा के पास<br>
अनगिन आरियाँ<br>
कटखने तूफान की<br>
तैयारियाँ<br>
कर न देना आँधियों को<br>
रोकने की भूल<br>
वर्ना रो पड़ोगे।<br><br>

हर नदी पर<br>
अब प्रलय के खेल हैं<br>
हर लहर के ढंग भी<br>
बेमेल हैं<br>
फेंक मत देना नदी पर<br>
निज व्यथा की धूल<br>
वर्ना रो पड़ोगे।<br><br>

बंद होंठों में छुपा लो<br>
ये हँसी के फूल<br>
वर्ना रो पड़ोगे।<br><br>
Anonymous user