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08:00, 29 दिसम्बर 2006 लेखक: [[कुँअर बेचैन]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:गज़ल]]
[[Category: कुँअर बेचैन]]
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चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया<br>
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया <br><br>
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए<br>
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया <br><br>
सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली<br>
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया <br><br>
आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ<br>
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया <br><br>
आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया<br>
नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया <br><br>
अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर<br>
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया<br><br>
ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी<br>
यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया <br><br>
अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर<br>
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया <br><br>