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अपना अपना सन्धान / त्रिलोचन

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|संग्रह=अरघान / त्रिलोचन
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मैंने जो प्रेमगान गाया था
 
वह केवल मेरा था
 
तुमने जो प्रेमगान सुन था
 
वह केवल तुम्हारा था
 
मैं तुम दोनों ही
 
अपना सन्धान कर रहे थे ।
 
प्रेम व्यक्ति व्यक्ति से
 
समाज को पकड़ता है
 
जैसे फूल खिलता है
 
उसका पराग किसी और जगह पड़ता है
 
फूलों की दुनिया बन जाती है ।
 
प्रेम में अकेले भी हम
 
अकेले नहीं हैं
 
मेला क्या हमारा ही मेला है
 
और मेले नहीं हैं ।
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