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यहाँ से भी चलें / ओम प्रभाकर

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::::सूखते।
:(अपाहिज हैं छत-मुँडेरे)
:::एक स्लेटी सशंकित आवाज़:::::आने लगी सहसा:::::::दूर से।
चलें, अब तो पहाड़ी उस पार
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