भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
::::सूखते।
:(अपाहिज हैं छत-मुँडेरे)
:::एक स्लेटी सशंकित आवाज़:::::आने लगी सहसा:::::::दूर से।
चलें, अब तो पहाड़ी उस पार