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{{KKCatKavita}}
{{KKCatGeet}}<poem>प्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर!<br>दुख से आविल सुख से पंकिल,<br>बुदबुद् से स्वप्नों से फेनिल,<br>बहता है युग-युग अधीर!<br><br>
जीवन-पथ का दुर्गमतम तल<br>अपनी गति से कर सजल सरल,<br>शीतल करता युग तृषित तीर!<br><br>
इसमें उपजा यह नीरज सित,<br>कोमल कोमल लज्जित मीलित;<br>सौरभ सी लेकर मधुर पीर!<br><br>
इसमें न पंक का चिन्ह शेष,<br>इसमें न ठहरता सलिल-लेश,<br>इसको न जगाती मधुप-भीर!<br><br>
तेरे करुणा-कण से विलसित,<br>हो तेरी चितवन में विकसित,<br>छू तेरी श्वासों का समीर! <br><br/poem>