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जब कभी भी स्वतंत्रता दिवस आता है, तो मुझे

याद आता है बरबस वह दिन, जब मैंने पढ़ाई पूरी की

और समझा जीवन की उपयोगिता

तो सोचा कि अब जीतनी ही होगी कोई ना कोई प्रतियोगिता

बस सोचकर इतनी सी बात

मैंने तैयारी की कई दिनों तक जगकर पूरी-पूरी रात

और सकुचाया- घबराया आया प्रतियोगिता- प्रांगन में सवेरे- सवेरे

तो देखा कि क़तरबढ़ थे युवक बहुतेरे

मैं डरा-सहमा- सकुचाया

द्वारपाल के पास आया

और प्रश्न कि घड़ी घुमाई

मेरा नंबर कब आयगा भाई?

उसने पलटकार कहा- मित्र,

कैसी बातें करते हो विचित्र ?

वैसे तो यह प्रतियोगिता शाम तक जाएगी

मगर पच्चास का नोट चलेगा और तेरी बारी आ जाएगी.

यह सुनकर-

मेरा मन मुस्कुराया

मैंने जेब से पच्चास के नोट निकाले

और उसके चेहरे पर घुमाया

तब कहीं जाकर काफ़ी मसक्कत के बाद मेरा नंबर आया

भाईसाहब, जब इस दुनिया में कोई भी सच्चा नहीं है

तो रिश्वत न देकर-

पिछले दरवाज़े से ना पहूँचना भी तो अच्छा नही है

ख़ैर छोरिये इन बातों को

प्रतियोगिता- प्रांगन में प्रवेश करते हैं

क्या हुआ? क्रमवार प्रस्तुत करते हैं.


बातें जरूर है विचित्र , किन्तु सुनिये -

मेरे मित्र, कि जब मेरे इंटरव्यू की बारी आई

तो मैंने अपने सामने एक मराठी शिक्षिका पाई

उसने कहा-

चलो शुरुआत करते हैं गणपति गणेश से

झटपट बताओ बेटा ये महाराष्ट्र से आते हैं, या उत्तरप्रदेश से?

मेरा भेजा गरमाया

मुझे बहुत ग़ुस्सा आया

मैंने कहा- मैडम, ये भी कोई सवाल है?

अजी बताइए, क्या माता काली की पूजा के लिए अधिकृत केवल पश्चिम बंगाल है?

ख़ैर छोड़िये यह बताइए महोदया,

तर्पण और पिंड दान के लिए केवल बिहारी हीं जाते हैं गया ?

या फिर दर्शन करने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के

यानी अवधेश के

क्या वही जाते हैं, जो होते हैं उत्तरप्रदेश के?

क्या साई बाबा मराठीयों के लिए पूज्य हैं?

क्या गुरु नानक देव पंजावियों के लिए है आराध्य?

बस करिए मैडम, मत पुछिये इस तरह के प्रश्न असाध्य

नही तो-

अमेरिका रूपी आतंकवादी विश्व के मानचित्र पर

अपनी उंगलियाँ रखेगा और मुस्कुराते हुए पुछेगा, कि-

यहाँ देखो, तुम्हारा महाराष्ट्र यहाँ है, तुम्हारा कश्मीर यहाँ है, तुम्हारा राजस्थान यहाँ है,

सब कुछ तो है मगर बेटा,

तुम्हारा हिंदुस्तान कहाँ है?

वह शिक्षिका भौंचक मुझे देखती रही.

चिंतन के सागर में डूबती रही, ख़ामोश बस मुझे एकटाक घूरती रही

मुझे उस दिन कूछ भी नही भया

और मैं बिना अनुमति के प्रतियोगिता - प्रांगन से बाहर आया

मैं जनता था, कि-

भाई- भतिजावाद और क्षेत्रवाद

प्रतियोगिता की भेंट चढ़ चुका है

योग्यता हो गयी है दरकिनार

क्योंकि अब प्रतियोगिता, प्रतियोगिता नहीं रही

बन गयी है व्यापार/ बन गयी है व्यापार.........बन गयी है व्यापार....../
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