भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अपने परम्परागत पेशे को
ढोता हुआ आज भी वह
वाहन वहन कर रहा सलीके से
मर्यादित जीवन को बार-बार
सतही मानसिकता से ऊपर
अलाप लेकर -
आल्हा -उदल / सोरठी-बिर्जाभार
सारंगा-सदाब्रिक्ष/भारतरी भरतरी चरित
या बिहुला-बाला-लखंदर का ।