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Kavita Kosh से
अपने परम्परागत पेशे को
ढोता हुआ आज भी वह
मर्यादित जीवन को बार-बार
सतही मानसिकता से ऊपर
अलाप लेकर -
आल्हा -उदल / सोरठी-बिर्जाभार
सारंगा-सदाब्रिक्ष/भारतरी भरतरी चरित
या बिहुला-बाला-लखंदर का ।