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|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
}}
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जब -
बीमार अस्पताल की
बीमार खाट पर पडी - पडी
मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा
तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत ।
कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि -
माँ, घवराओ नही ठीक हो जाएगा सब ..... ।
सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन् हो गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
<poem>
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|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
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जब -
बीमार अस्पताल की
बीमार खाट पर पडी - पडी
मेरी बूढ़ी बीमार माँ
खांस रही थी बेतहाशा
तब महसूस रहा था मैं
कि, कैसे -
मौत से जूझती है एक आम औरत ।
कल की हीं तो बात है
जब लिपटते हुये माँ से
मैंने कहा था , कि -
माँ, घवराओ नही ठीक हो जाएगा सब ..... ।
सुनकर चौंक गयी माँ एकवारगी
बहने लगे लोर बेतरतीब
सन् हो गया माथा
और, माँ के थरथराते होंठों से
फूट पडे ये शब्द -
"क्या ठीक हो जाएगा बेटा !
यह अस्पताल ,
यह डॉक्टर ,
या फिर मेरा दर्द ........?
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