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{{KKRachna
|रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त
|संग्रह=साकेत / मैथिलीशरण गुप्त
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:::मुझे फूल मत मारो,मैं अबला बाला वियोगिनी , कुछ तो दया विचारो।होकर मधु के मीत मदन , पटु , तुम कटु गरल न गारो,मुझे विकलता , तुम्हें विफलता , ठहरो , श्रम परिहारो।नही भोगनी यह मैं कोई , जो तुम जाल पसारो,बल हो तो सिन्दूर -बिन्दु यह, --यह हर नेत्र हरनेत्र निहारो!रूप -दर्प कंदर्प , तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,लो , यह मेरी चरण -धूलि उस रति के सिर पर धारो।धारो!
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