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Kavita Kosh से
सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं