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जब भी तन्हाई से घबरा के / सुदर्शन फ़ाकिर
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18:00, 14 फ़रवरी 2010
हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह <br>
तुम अगर
हार
ख़ार
समझते हो तो हट जाते हैं <br><br>
ख़ार = thorn
Sandeep Sethi
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