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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>शहर में ढूंड ढूंढ रहा हूँ के कि सहारा दे दे|
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे|
पेड़ सब नन्गे नगेँ फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं,
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे|
वक़्त की सन्गज़नी सगँज़नी नोच गई सारे नक़ुशनक़श,
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे|
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये,
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोका धोखा दे दे|
मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा,
तुम को "राहत" की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा,
वो बिखारी भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे|
</poem>
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