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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>सफ़र की हद है वहाँ तक के कि कुछ निशान रहे|
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकन थकान रहे|
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है,
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|
मुझे ज़मीन ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया,
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा,
दुआ करो के कि सलामत मेरी ज़बान रहे|
</poem>
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