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					|रचनाकार=कुमार मुकुल
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टुकदम-टुकदम आती चुहिया
आंखें गोल नचाती चुहिया
क्षण-भर को जो आंख लगे तो
 करने लगती धींगा-मुस्तीहमुस्ती 
लगा चौकडी खाट के नीचे
 घर भर में कर जाती गश्ती. 
पर जैसे ही आंख खुले तो
दुलहन सी शर्माती चुहिया
टुकदम.....
 
	
	

