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देखते जाओ मगर कुछ भी / क़तील

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मसलिहत का ये तकाज़ा है की खामोश रहो ||
लोग देखंगे तो अफसाना बना डालेंगे<br />|यूँ मेरे दिल में चले आओ के आहट भी न हो||
गुनगुनाती हुई रफ्तार बड़ी नेमत है<br />|तुम चट्टानों से भी फूटो तो नदी बन के बहो||
ग़म कोई भी हो जवानी में मज़ा देता है<br />|ग़म-ए-जहाँ जो नहीं है ग़म-ए-दौरान ही सहो हो चुके प्यार में रुसवा सर-ए-बाज़ार क़तील<br />अब कोई हम को नहीं फ़िक्र जो होना है सो हो||
हो चुके प्यार में रुसवा सर-ए-बाज़ार क़तील|
अब कोई हम को नहीं फ़िक्र जो होना है सो हो||
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