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:{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=भरत प्रसाद}} {{KKCatKavita}}<poem>सुना है-:ममता के स्वभाववश:माता की छाती से:झर-झर दूध छलकता है
:मैं तो अल्हड़ बचपन से:झुकी हुई सांवली घटाओं में:धारासार दूध बरसता हुआ:देखता चला आ रहा हूँ।
:आत्मविभोर कर देने वाला:यह विस्मय:मुझे प्रकृति के प्रति:अथाह कृतज्ञता से:भर देता है।</poem>
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